
“जब दो महिलाओं पर हत्या का आरोप लगता है, तो पूरा समाज सदमे में आ जाता है, मीडिया, बहस, चर्चा – सब कुछ शुरू हो जाता है, लेकिन जब वर्षों से महिलाएं घरेलू हिंसा, दहेज हत्या, बलात्कार और उत्पीड़न का शिकार होती रहीं, तब यह सदमा कहां था?


क्यों जब एक महिला को जलाया जाता है, या पति और ससुराल वाले उसे मारते-पीटते हैं, तो समाज इतनी चुप्पी ओढ़ लेता है? यह कैसा दोहरा मापदंड है – जहां एक औरत अगर अपराध करे तो हंगामा, लेकिन जब औरत पर अपराध हो तो खामोशी?
यह सवाल सिर्फ कानून से नहीं, समाज से भी पूछा जाना चाहिए – कि आपकी संवेदनाएं चुनिंदा क्यों हैं?
लेखक जावेद अख्तर ने सोनम रघुवंशी और मुस्कान मामले पर कहा – ‘जब महिलाएं अन्याय का शिकार होती हैं, तब समाज उतना विचलित क्यों नहीं होता, जितना तब होता है जब एक महिला आरोपों के घेरे में आती है? ये आत्ममंथन का समय है – सिर्फ न्याय मांगने का नहीं, बल्कि यह भी सोचने का कि क्या हम एक निष्पक्ष और संवेदनशील समाज हैं?