
1942 की अगस्त क्रांति में आंदोलन का एक-एक दिन बीतने के साथ ही इस बागी भूमि पर अंग्रेजों के विरुद्ध जनाक्रोश बढ़ता गया। ब्रिटिश हुकूमत के अत्याचार से तंग बलियावासियों के खून में उबाल आने लगा और यहां क्रांति की ज्वाला चरम पर पहुंच गई, अंग्रेजों के विरुद्ध जगह-जगह सभाएं आयोजित कर गांधी जी के वचन व बलिया की शान रखने के लिए रणनीतियां तैयार की जाने लगी।
तारीख – 11 अगस्त 1942
10 अगस्त को बलिया की सड़कों पर उमड़े जनसैलाब ने जो संदेश दिया, उससे स्वतंत्रता आन्दोलन के नरम दल और गरमदल दोनों के नेता–कार्यकर्त्ता काफी उत्साहित थे। उस विशाल जुलूस में शामिल लोग बड़ी बहादुरी से दूसरों को यह समझा रहे थे कि अब तो बलिया के कलक्टर, एसपी ने लिखकर भेज दिया है कि बलिया को आजाद करना पड़ेगा, नहीं तो बहुत खून-खराबा, बलवा हो जाएगा।
कुछ लोग सुनकर हंसते थे, लेकिन बहुतेरों के मन-दिमाग में बैठा प्रशासनिक अमले का डर निकलने लगा था। क्योंकि जब जुलूस निकला, तो लोगों को लग रहा था कि अंग्रेज अधिकारी लाठीचार्ज करेंगे, गोली चलवाएंगे, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। उल्टे प्रशासनिक अमला भीड़ को देखकर दुबक गया।
आस-पास के गांवों और शहर के विभिन्न मुहल्लों से छोटे-छोटे जत्थों में निकला जुलूस दोपहर में जब चौक में पहुंचा, तो यह उफनाए जनसागर में बदल चुका था, उस समय यह चौक, जिसे आज हम शहीद पार्क के रूप में जानते हैं, पूरी तरह खुला मैदान था। आज जहां पूज्य बापू महात्मा गांधी की मूर्ति लगी है, उसके नीचे कुआं था। चारों ओर नीम के पेड़ों की छांव थी, और यहां से छह दिशाओं में सड़कें निकलती थीं।
यहां पहुंचकर यह जुलूस जनसभा में परिवर्तित हो गया, जिला कांग्रेस ने पं. राम अनन्त पाण्डेय जी को आज का “डिक्टेटर” घोषित किया था। विद्यार्थियों और व्यापारियों के इस जनसागर को पाण्डेय जी ने दो घंटे तक ललकारा, रिमझिम बरसात के बीच बीस हजार से अधिक की भीड़ को टिन के भोंपू से सम्बोधित करना भी अपने आप में बड़ी बहादुरी थी।
लोग कयास लगा रहे थे कि पुलिस हमला करेगी, लेकिन पुलिस नहीं आयी। वैसे भी गरम दल ने पुलिस के हमले से निपटने की पूरी तैयारी कर रखी थी। युवाशक्ति के रूख को भांपते हुए पाण्डेय जी ने अहिंसात्मक आन्दोलन का निवेदन करते हुए प्रशासन को पंगु बनाने की बात भी कही, बलिया शहर तो कल से ही पूरी तरह बन्द था, स्कूल–कॉलेज भी बन्द थे।
कचहरी और सरकारी कार्यालय बन्द कराने के लिए जनसागर ने कूच किया, लेकिन जुलूस के वहां पहुंचने से पहले ही प्रशासन ने खुद ताले लगवा दिए।
विजय की खुशी के बीच ही पं. राम अनन्त पाण्डेय को गिरफ्तार कर लिया गया :
बलिया शहर से निकली आजादी की यह चिंगारी गांव–कस्बों तक पहुंच चुकी थी, जगह-जगह जुलूस निकालने की तैयारियां शुरू हो गईं, और प्रशासन भी आन्दोलन को कुचलने की तैयारी में जुट गया।