
भरतपुर के ‘अपना घर’ आश्रम में गुरुवार का दिन भावनाओं से भर गया। 17 साल पहले बिछड़ी मां जैसे ही अपनी बेटी से मिलीं, दोनों एक-दूसरे से लिपटकर फूट-फूटकर रोने लगीं। पास खड़ा बेटा नम आंखों से यह दृश्य देखता रहा।
मैं 6 साल का था जब मां घर से गईं :
बेटे रोहित झा की आवाज़ भर्रा जाती है – “मां के जाने के वक्त मैं सिर्फ 6 साल का था, बहन सीतु 5 साल की और सबसे छोटी शिवानी 3 साल की थी। पिता अखिलेश झा झांसी में ड्राइवर का काम करते थे। हमने पुलिस में FIR भी करवाई, लेकिन सालों तलाश के बाद भी कोई खबर नहीं मिली।
दोस्तों की बातों में, और लोगों के शक में, मां की तलाश का हौसला भी धीरे-धीरे टूटने लगा, “कई बार सोचा ढूंढ लाऊं, लेकिन लोग कहते – पता नहीं, वो जिंदा भी हैं या नहीं।”
3 अगस्त को आया वो कॉल जिसने सब बदल दिया :
ठीक 17 साल बाद, 3 अगस्त को एक फोन आया – “आपकी मां भरतपुर के अपना घर आश्रम में हैं, मानसिक स्थिति ठीक नहीं है, आकर पहचान कर लें।”
रोहित, बहन सीतु और जीजा विकास तुरंत भरतपुर पहुंचे, जैसे ही मां को देखा, सीतु दौड़कर उनसे लिपट गई, दोनों की आंखों से बरसों का दर्द आंसुओं में बहने लगा। रोहित भी खुद को रोक न सका।

मां रजनी (ऑरेंज साड़ी में) से 17 साल बाद मिलकर बेटी सीतू (लाल साड़ी में) भावुक हो गई
बचपन की तस्वीर ने कराई पहचान :
रोहित बचपन की एक तस्वीर साथ लाया था – तीनों भाई-बहन एक साथ। तस्वीर देखते ही सीतु बोली – “देखो मां, ये मैं हूं, ये भाई रोहित है और ये सबसे छोटी शिवानी, मां की आंखों में पहचान की चमक लौट आई।
आश्रम से घर तक की कहानी :
अपना घर आश्रम के सचिव बसंत लाल गुप्ता ने बताया – रानी झा को 16 जून 2018 को यहां लाया गया था। इससे पहले वह बीकानेर नारी निकेतन में थीं, जहां उन्हें 2012 में लाया गया था। इलाज और देखभाल से धीरे-धीरे वो ठीक होने लगीं।
3 अगस्त को आश्रम ने रानी के परिजनों से संपर्क किया। वीडियो कॉल पर मां-बेटे की मुलाकात कराई गई, जिसके बाद परिजन तुरंत भरतपुर पहुंचे और मां को घर ले गए।

तस्वीर बेटे रोहित झा की है, मां और बहन को लिपट कर रोते देख वह भी अपने आंसू नहीं रोक सका
17 साल की जुदाई के बाद यह मिलन सिर्फ एक परिवार के लिए नहीं, बल्कि इंसानी रिश्तों की गहराई और उम्मीद की ताकत का जीता-जागता उदाहरण बन गया।