
दारुल उलूम फैज़े मोहम्मदी, हथियागढ़ में “बज़्म-ए-सहाफत” का प्रेरणादायक आयोजन :
लक्ष्मीपुर, महराजगंज ;
दारुल उलूम फैज़े मोहम्मदी, हथियागढ़ की जमीयतुल-तलबा के तत्वावधान में “बज़्म-ए-सहाफत” नामक भव्य कार्यक्रम का आयोजन संस्था के सरपरस्त मौलाना क़ारी मोहम्मद तैय्यब क़ासमी की सरपरस्ती और मोहतमिम मौलाना मुहीउद्दीन क़ासमी नदवी की निगरानी में किया गया, कार्यक्रम का कुशल संचालन मुफ़्ती एहसानुल हक़ क़ासमी ने किया।
इस अवसर पर मुख्य अतिथि डॉ. वलीउल्लाह नदवी, हाफिज़ व क़ारी इसरार अहमद (सूरत) सहित संस्था से जुड़े शिक्षकगण और छात्र बड़ी संख्या में उपस्थित रहे।
कार्यक्रम की शुरुआत हाफिज़ मोहम्मद मज़म्मिल की तिलावत-ए-क़ुरान और मोहम्मद हसन की नात-ए-पाक से हुई, इसके पश्चात छात्रों द्वारा तैयार की गई बहुभाषीय दीवार-पत्रिका (जिदारिया) — अरबी, उर्दू, अंग्रेज़ी और हिंदी भाषाओं में — का लोकार्पण मौलाना क़ारी तैय्यब साहब द्वारा किया गया।
मुख्य वक्तव्य में मौलाना क़ारी मोहम्मद तैय्यब क़ासमी ने कहा :
“सहाफत लोकतंत्र का चौथा और सबसे प्रभावशाली स्तंभ है, विचारों की अभिव्यक्ति और समाज में जनजागरण का यह सशक्त माध्यम है, चाहे वह सामाजिक सुधार रहा हो, स्वतंत्रता संग्राम या ज्ञान-विज्ञान का विस्तार — पत्रकारिता की भूमिका सदा अग्रणी रही है, यह ज़ुल्म के खिलाफ आवाज़ और मज़लूमों की जुबान बनती है, छात्र पत्रकारिता में आगे बढ़ें और लेखन-कौशल के साथ-साथ सुंदर हस्तलिपि पर भी ध्यान दें।”
संस्था के मोहतमिम मौलाना मुहीउद्दीन क़ासमी नदवी ने व्यावहारिक मार्गदर्शन देते हुए कहा :
“रोज़ाना किसी अख़बार का एक पृष्ठ ध्यान से पढ़ें, उसकी भाषा और शब्दावली को समझें, एक डायरी बनाकर प्रतिदिन अपने अध्ययन का सारांश लिखें, यदि आप यह अभ्यास कुछ माह तक नियमित रूप से करते हैं, तो पत्रकारिता की बारीकियां स्वतः समझ में आने लगेंगी।”
उन्होंने यह भी जोड़ा :
“पत्रकारिता आज इतना प्रभावशाली माध्यम बन चुकी है कि चंद सेकंड में पूरी दुनिया की खबरें हमारे सामने होती हैं। यदि इसका प्रयोग ईमानदारी और जिम्मेदारी से हो, तो यह नफरत को मिटा सकती है — अन्यथा यही माध्यम विनाशकारी बन सकता है।”
मौलाना मोहम्मद सईद क़ासमी ने सूरह क़लम की शुरुआती आयतों के माध्यम से लेखन और भाषा की अहमियत को तर्क सहित प्रस्तुत किया।
डॉ. वलीउल्लाह नदवी ने छात्रों को संबोधित करते हुए कहा :
“पत्रकारिता केवल पेशा नहीं, बल्कि एक जिम्मेदारी है, संयम, ईमानदारी और सच्चाई के साथ इसे निभाना ज़रूरी है, आप चाहे जिस क्षेत्र में हों, लेखन, रिपोर्टिंग, संपादन और पत्रकारिता की शैली में दक्षता हासिल करें, यही वह कला है जिससे आप समाज को दिशा दे सकते हैं।”
डॉ. मौलाना मुहम्मद अशफ़ाक़ क़ासमी, प्रभारी अंजुमन फ़ैज़ुल लिसान, ने कहा :
“यह देखकर प्रसन्नता होती है कि यहां धार्मिक शिक्षा के साथ पत्रकारिता और भाषा की जागरूकता भी दी जा रही है, आज के दौर में तबलीग़-ए-दीन और दिफा-ए-दीन — दोनों की आवश्यकता है और इसका सबसे प्रभावी माध्यम अब मीडिया बन चुका है। जिसके पास मीडिया है, वही प्रभावशाली है।”
इस अवसर पर संस्था के सभी शिक्षकगण विशेष रूप से मौलाना मोहम्मद सईद क़ासमी, मौलाना वज्हुल क़मर क़ासमी, मौलाना शुकरुल्लाह क़ासमी, मौलाना साबिर नोमानी, मौलाना मोहम्मद याह्या नदवी, हाफिज़ ज़बीहुल्लाह, हाफिज़ सलीमुल्लाह, मौलाना ज़िल्लुर्रहमान नदवी, क़ारी मोहम्मद असजद, मास्टर मोहम्मद उमर खान, मास्टर जावेद अहमद, मास्टर फ़ैज़ अहमद, मास्टर जमी़ल अहमद, मास्टर सादिक अली, मोहम्मद क़ासिम आदि उपस्थित रहे।
यह आयोजन छात्रों के लिए न केवल प्रेरणास्त्रोत बना, बल्कि उनकी भाषाई, बौद्धिक और रचनात्मक क्षमताओं को निखारने का एक सशक्त मंच भी सिद्ध हुआ।
आयोजन की कुछ तस्वीरें देखे –



