देवरिया में बकरीद पर गला काटने वाले की रहस्यमयी झोपड़ी

देवरिया में 60 साल के मुस्लिम व्यक्ति ने बकरीद के दिन (7 जून) अपना गला काट लिया, इसके बाद घर में ही लेटा रहा, घरवालों को पहले लगा कि ऊपर लाल रंग डाला है, लेकिन हकीकत पता चली तो हॉस्पिटल लेकर गए, 8 घंटे के बाद उसकी मौत हो गई, मौत से पहले उसने ऐसा क्यों किया, इसका जवाब दो पन्नों में लिख दिया।

जिस जगह उसने ऐसा किया, वह झोपड़ी किसी रहस्यमयी जगह से कम नहीं, वह किसी को अंदर नहीं जाने देता था, सिर्फ एक बकरी बांधी जाती थी, बीच-बीच में वह झोपड़ी में अगरबत्ती जलाता और तंत्र-मंत्र करता था, झोपड़ी में कुल्हाड़ी, चाकू, पेचकस, दरांती, लोहे के रॉड जैसे धारदार और नुकीली चीजें रखी थीं।

गला काटने के बाद 8 घंटे जीवित रहा ईश मोहम्मद :-
देवरिया जिला मुख्यालय से करीब 16 किलोमीटर दूर उधोपुर गांव है, कुल आबादी करीब 3 हजार है, इसमें 90 घर मुस्लिम के हैं, इन्हीं में एक घर ईश मोहम्मद का है, घर में एक ई-रिक्शा और आटा चक्की है, ईश के दो लड़के यही काम करते हैं, तीसरा मुंबई में काम करता है, ईश मोहम्मद का मन पूजा-पाठ में ज्यादा लगता था, वह अक्सर अंबेडकरनगर में सुल्तान सैयद मखदूम अशरफ शाह की दरगाह पर जाते रहते थे।

बकरीद के दिन ईश मोहम्मद सुबह-सुबह नमाज पढ़कर घर आए, घर के बगल बनी झोपड़ी में जाकर लेट गए, कोई इस झोपड़ी में जाता नहीं था, इसलिए उस दिन भी कोई नहीं गया। करीब 10 बजे ईश मोहम्मद ने कमरे में अगरबत्ती जलाई, पूजा-पाठ किया और फिर झोपड़ी में ही रखे चाकू से अपना गला काट लिया।

तेजी से खून निकलने लगा, तो तख्त के बगल ही नीचे लेट गए, दोपहर में बड़ा बेटा खाने के लिए बुलाने पहुंचा, ईश ने उसे लौटा दिया, कुछ देर बाद दूसरा बेटा पहुंचा उसे भी लौटा दिया। लेकिन, उसने देखा कि कपड़े पर कुछ खून जैसा है, इस पर घरवाले तुरंत उन्हें लेकर हॉस्पिटल गए, 6 बजे ईश-मोहम्मद की मौत हो गई।

बेटा बोला- हमें लगा अब्बू रंग लगाकर लेटे हैं :-
ईश मोहम्मद के बड़े बेटे अहमद अंसारी से बात-चीत वह बकरीद वाले दिन की घटना को लेकर कहते हैं-हम सभी नमाज पढ़ने गए थे, वहां से सबको एक व्यक्ति के यहां सेवई खाने जाना था, लेकिन, अब्बू ने कहा कि हम नहीं जाएंगे और वह घर चले आए, हमें लगा कि कहीं कुर्बानी में जाना होगा, 11 बजे जब हम लौटकर आए तो मां ने कहा कि अब्बू को खाने के लिए बुला लो, हम गए तो झोपड़ी के बाहर टेंपरेरी दरवाजा लगा था।

अहमद कहते हैं- हमने दरवाजा हटाया तो अब्बू ने टार्च वाली बैटरी को मेरी तरफ फेंका, यह मुझे लगी नहीं, लेकिन वह यही कह रहे थे कि यहां से चले जाओ, लेकिन, मुझे उनके कपड़े पर रंग जैसा दिखा, कुछ देर बाद हमारा छोटा भाई फैज अंसारी गया, उसने टॉर्च जलाकर देखा तो उसे लगा कि यह तो खून है। इसके बाद उसने सबको बुलाया, हम लोग उन्हें लेकर गौरी बाजार पहुंचे।

छोटा भाई फैज बताता है- गौरी बाजार गांव से करीब 8 किलोमीटर की दूरी पर है, वहां पुलिस भी आ गई थी, हम लोग बार-बार उनके इलाज की बात करते, लेकिन वह हाथों से कुछ लिखने का इशारा करते थे, हमने इग्नोर किया तो उन्होंने पैर से मुझे धक्का दे दिया।

सुकून से मिट्टी देना, किसी से डरना नहीं :-ईश मोहम्मद ने अपना गला काटने से पहले जो सुसाइड नोट लिखा था, उसमें उन्होंने प्रधान, प्रशासन और दरबार को संबोधित किया था, लिखा था- इंसान बकरे को अपने बेटे की तरह पोसकर कुर्बानी करता है, वो भी जीव है, मैं खुद अपनी कुर्बानी अल्ला के रसूल के नाम पर कर रहा हूं, मेरी मिट्टी घबरा कर मत करना, किसी ने मेरा कत्ल नहीं किया है, सुकून से मिट्टी देना, किसी से डरना नहीं, मेरी कब्र बगल की जगह पर जहां खूंटा है, उसी जगह पर होनी चाहिए, इसके बाद ईश मोहम्मद अपने जन्मदिन की बात लिख देते हैं।

कोई व्यक्ति ऐसा कैसे कर सकता है, क्या कुछ दिन पहले से ही उन्होंने सब कुछ तय कर लिया था…?
इस सवाल को हमने ईश मोहम्मद के भांजे अमरुल्ला अंसारी से पूछा, अमरुल्ला कहते हैं- पिछले महीने वह गांव में ऐसे ही बैठे थे, तब कहा था कि जल्द ही मेरा इंतकाल हो जाएगा, अब मेरी उम्र कम बची है, उस वक्त हम लोगों ने इसे मजाक में लिया, क्योंकि गांव में लोग ऐसा बोल देते हैं, अगर हमें पता होता कि ऐसा कुछ होना वाला है, तो हम मामा को पेड़ में बांध देते, लेकिन ऐसा कभी न करने देते।

हमने अमरुल्ला से कहा कि अल्लाह के नाम पर उन्होंने अपनी कुर्बानी दे दी, क्या यह सही है? अमरुल्ला कहते हैं-उन्होंने अपनी समझ से सही किया, लेकिन समाज की नजर में तो गलत ही किया, कोई अपनी कुर्बानी थोड़ी देता है, जो पहले से जैसे होता आया है, वैसे ही होना चाहिए, इसीलिए आज हर आदमी गलत कह रहा।

घर में कुर्बानी होती तो शायद नहीं करते :-

एक सवाल मन में आया कि क्या घर में इस साल कुर्बानी नहीं हुई…? पता चला कि इस साल कुर्बानी नहीं हुई, पिछले साल कुर्बानी की गई थी, इस बार जो बकरा था, वह एक साल का नहीं हुआ था, क्या बकरे की कुर्बानी दी जाती तो ईश मोहम्मद अपना गला नहीं काटते? ये सवाल उनकी पत्नी हाजरा से पूछा गया, वह कहती हैं- उन्होंने जो कुछ किया, इसके बारे में बहुत पहले से ही तैयारी कर ली थी।

“किसी को कुछ बताते नहीं थे, हमेशा उसी झोपड़ी में रहते थे, पिछले एक साल से तो इस वाले घर में ही नहीं आए। हमेशा उसी झोपड़ी में रहते थे”

हाजरा, पत्नी

जहां कब्र चाही, बेटे ने नहीं बनाई :-

घर के बगल ही एक खाली जगह है, पहले यहां गोबर रखा जाता था, ईश ने इस जगह को साफ किया और यहीं एक खूंटा गाड़ दिया, गला काटने से पहले सुसाइड नोट में भी लिख दिया कि हमारी कब्र यहीं बनाना, ऐसा लगता है कि जैसे पहले से ही मरने और फिर यहीं कब्र बनाने का मन बना लिया था।

हमने कब्र को लेकर पत्नी और बेटे से बात की, पत्नी हाजरा कहती हैं- हमने कब्रिस्तान में दफनाया, क्योंकि यहां रहते तो रोज दिखते, हमको और बच्चों को रोना आता, यही बात ईश मोहम्मद के बेटों ने भी कही, बेटी ताजरुन ने तो कहा कि जमीन का इतना विवाद है कि क्या ही कहा जाए?

कुल मिलाकर ईश मोहम्मद के सुसाइड वाले इस फैसले को परिवार का कोई भी व्यक्ति सही नहीं बता रहा, आसपास के लोग भी कहते हैं कि हो सकता है कि ईश मोहम्मद को अपना फैसला सही लग सकता था। लेकिन, कोई भी व्यक्ति इसे सही नहीं कहेगा, कुर्बानी का यह कतई मतलब नहीं कि अपनी ही कुर्बानी कर दी जाए।

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