सिद्धार्थनगर के उसका रोड स्थित आयुष हॉस्पिटल रविवार को सुर्खियों में तब आया जब गर्भवती महिला शहनाज की मौत ने जिले के स्वास्थ्य तंत्र की पोल खोल दी, उदयपुर जोगिया के बनकटा गांव निवासी नसरत अली की बेटी पहले दो बार सिजेरियन डिलीवरी करवा चुकी थी। इसके बावजूद अस्पताल की महिला डॉक्टर ने भरोसा दिलाया कि इस बार नॉर्मल डिलीवरी संभव है।

अस्पताल की लापरवाही और झूठे वादे :
नसरत अली ने बताया, हमने सुबह करीब 11 बजे बेटी को भर्ती कराया, पूरे दिन डॉक्टरों ने नॉर्मल डिलीवरी का भरोसा दिलाया। शाम 6 बजे कहा गया कि ऑपरेशन करना पड़ेगा, लेकिन थोड़ी देर बाद मरीज को दूसरे अस्पताल रेफर कर दिया गया। तब तक शहनाज की जान जा चुकी थी।
परिवार का गम पूरे जिले में चर्चा का विषय बन गया। लोगों का कहना है कि समय पर सही कदम उठाया जाता तो शहनाज की जान बच सकती थी।

CMO ने किया खुलासा :
घटना की सूचना पर CMO डॉ. रजत चौरसिया मौके पर पहुंचे। मीडिया ने अस्पताल में अग्निशमन की कमी पर सवाल किया, तो उन्होंने कहा, “अगर अग्निशमन नहीं है तो विभाग से पूछिए।” दोबारा सवाल किए जाने पर CMO ने स्वीकार किया, “अस्पताल में अग्निशमन की व्यवस्था नहीं है, जांच कराई जाएगी।” यह स्वीकारोक्ति स्वास्थ्य विभाग की नाकामी और मिलीभगत पर गंभीर सवाल खड़ा करती है।

फर्जी रजिस्ट्रेशन और विरोधाभासी बयान :
जांच में सामने आया कि अस्पताल का रजिस्ट्रेशन डॉ. जितेंद्र के नाम पर था, लेकिन मरीजों का इलाज करने वाली महिला डॉक्टर खुद को संचालक और चिकित्सक दोनों बता रही थीं। डॉ. जितेंद्र ने कैमरे पर कहा, “मैं ऑन कॉल आता हूं।” लेकिन बाद में इस बयान से मुकर गए। इससे अस्पताल में फर्जीवाड़ा और दिखावे की पुष्टि होती है।
कार्रवाई का अभाव :
मुख्य चिकित्सा अधिकारी ने मौके पर न तो किसी डॉक्टर को हिरासत में लिया, न ही अस्पताल को सील किया। केवल कहा गया, “जांच कराई जाएगी।” यह निष्क्रियता दर्शाती है कि जांच सिर्फ समय बिताने का औजार बन गई है। जनता अब सवाल कर रही है—कब तक मौतों को जांच के नाम पर दबाया जाएगा?
रिपोर्टर पर धमकी और अस्पताल का गैरजिम्मेदार रवैया:
जब आयुष अस्पताल की महिला संचालक से ऑन कैमरा पक्ष जानने की कोशिश की गई, तो वह गुस्से में आ गई और दैनिक भास्कर के रिपोर्टर पर FIR कराने की धमकी देने लगी। यह रवैया अस्पताल की लापरवाही और गैरजिम्मेदारी को और उजागर करता है।
स्थानीय आक्रोश और मांग :
स्थानीय नागरिक और समाजसेवी मांग कर रहे हैं कि अस्पताल को तुरंत सील किया जाए, लोगों का कहना है कि आयुष हॉस्पिटल मौत का अड्डा बन चुका है, संबंधित डॉक्टरों के खिलाफ धारा 304A के तहत मुकदमा दर्ज किया जाए और स्वास्थ्य विभाग के जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई हो।
बिना फायर सेफ्टी के अस्पताल चलाना, बिना वैध रजिस्ट्रेशन मरीजों का इलाज करना और बिना योग्य डॉक्टर के ऑपरेशन करना सभी गंभीर अपराध हैं। शहनाज की मौत प्रशासन की लापरवाही और स्वास्थ्य विभाग की मिलीभगत का प्रतीक बन गई है।





